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प्रेय (स्)  : वि० [सं० प्रिय+इयसुन् प्रादेश] [स्त्री० प्रेयसी] बहुत प्यारा। विशेष प्रिय। पुं० परम प्रिय व्यक्ति। २. स्त्री का पति या स्वामी। ३. स्त्री का प्रेमी। ४. धार्मिक क्षेत्र में यह कामना कि हम स्वर्ग प्राप्त करके अनेक प्रकार के सुख भोगें (मोक्ष-प्राप्ति की कामना से भिन्न)। ५. कल्याण। मंगल। ६. साहित्य में एक प्रकार का अलंकार जिसमें एक भाव किसी दूसरे भाव अथवा स्थायी का अंग होता है। जैसे—प्रभु-पद सौंह करैं कहत, वाहि तुच्छ एक तीर। लखत इन्द्रजित् कौं बनहु तौ तुम लछमन बीर। इस प्रसंग में व्यभिचार भाव ‘गर्व’ कुछ गौण होकर स्थायी भाव ‘क्रोध’ का अंग हो गया है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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